पेरिस जलवायु समझौते में ट्रंप ने भारत को लिया आड़े हाथ

श्रीराजेश

 |  05 Jun 2017 |   242
Culttoday

दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक शक्ति अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान ने भारतीय विदेश नीति की विफलता को जगजाहिर कर दिया है. ट्रंप ने कहा है कि पर्यावरण की रक्षा और कार्बन डाइऑक्साइड गैस के उत्सर्जन को कम करने के नाम पर भारत अरबों-खरबों डॉलर की मांग करता है और पेरिस समझौता भारत और चीन के पक्ष में झुका हुआ है. इसलिए अमेरिका इस समझौते से बाहर होने में अपनी समझदारी समझता है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार का लगभग आधे से अधिक समय का कार्यकाल पूरा हो चुका है और अब उसके पास किस भी प्रकार की योजनाओं को लागू तथा पूरा करने के लिए केवल दो साल का समय शेष हैं. विदेश नीति को विदेश मंत्री और उनके मंत्रालय के हाथ से लेकर स्वयं प्रधानमंत्री और उनके कार्यालय द्वारा चलाये जाने का परिणाम कुछ खास अच्छा नहीं रहा हैं. अभी तक शायद किसी भी प्रधानमंत्री ने इतने विदेश दौरे नहीं किए, जितने कि मोदी कर चुके हैं लेकिन ये विदेशी दौरे केवल वहां रहने वाले भारतीयों या भारतीय मूल के लोगों को प्रभावित करने के अलावा अन्य कोई विशेष उपलब्धि दर्शाती है. भारत के नजरिये से यह उसके लिए एक बहुत बड़ा झटका है. हालांकि अब चीन ने कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन के मामले में अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है, लेकिन अब भी वह 28 यूरोपीय देशों द्वारा कुल मिलाकर किए जाने वाले उत्सर्जन से अधिक गैस छोड़ रहा है. भारत का उत्सर्जन अमेरिका के उत्सर्जन के आधे से भी अधिक कम है जबकि उसकी जनसंख्या अमेरिका के मुकाबले चार गुना अधिक है. लेकिन ट्रंप और उनके सलाहकारों का मानना है कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का स्तर कम करने से अमेरिका के औद्योगिक विकास पर असर पड़ेगा और उसके यहां रोजगार में कमी आएगी. ट्रंप का जनाधार अल्प-शिक्षित और कोयले की खान में काम करने वाले मजदूर जैसे तबकों में अधिक मजबूत है. इन लोगों की रोजगार संबंधी आशंकाओं को भड़का कर और उनका चुनावी फायदा उठाकर ही ट्रंप सत्ता में आए हैं. अब उन्हें नजरअंदाज करना उनके लिए संभव नहीं. मोदी इसके उलट अपने सभी चुनावी वादे लगभग भूल चुके हैं. लेकिन भारत और अमेरिका के लोकतंत्र और उसकी कार्यप्रणाली में यही अंतर है. अमेरिका में लोग इतनी आसानी से चुनावी वादे भूलने नहीं देते. ट्रंप भी अनेक बातों में मोदी से मिलते-जुलते हैं. बोलते समय वे भी तथ्यों का कोई खास ख्याल नहीं रखते. मसलन भारत पर अरबों-खरबों डॉलर की मांग करने का आरोप बिलकुल निराधार है लेकिन ट्रंप को इसकी उसी तरह कोई चिंता नहीं है जिस तरह मोदी को इसी तरह के बयान देते हुए नहीं होती. दोनों ही आक्रामक किस्म के नेता हैं और अचानक लोकप्रियता प्राप्त कर बैठे हैं. लेकिन पर्यावरण के मुद्दे पर ट्रंप की बातें कितनी भी आघात पहुंचाने वाली क्यों न हों, यह बात ध्यान में रखनी होगी कि उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान भी यही कहा था और वैश्विक तापमान बढ़ने के विचार से असहमति जताई थी. ट्रंप कह सकते हैं कि वे अपने चुनावी वादे पूरे कर रहे हैं क्योंकि पर्यावरण संबंधी समझौतों को नकारने का वादा उनके चुनाव प्रचार का हिस्सा था.


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